संस्कृत भाषा को रोजगार पूरक बनाना समय की मांग:- राज्यपाल
हरिद्वार। राज्यपाल बेबी रानी मौर्या ने उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के आठवंे दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिभाग किया। कार्यक्रम की शुरूआत मुख्य अतिथि द्वारा दीप प्रज्जवलन कर की गयी।
राज्यपाल ने दीक्षांत समारोह में प्रो0 जगदीश प्रसाद सेमवाल एवं प्रो0 जगन्नाथ जोशी को विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि से सम्मानित किया तथा विश्वविद्यालय के छात्र – छात्राओं को उपाधि एवं मेडल प्रदान किये।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत एवं संस्कृति के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए समर्पित, माँ गंगा के पावन तट पर स्थित उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय अत्यंत सराहनीय कार्य कर रहा है। यह प्रसन्नता की बात है कि संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत में निहित ज्ञान को आधुनिक ज्ञान के साथ जोड़कर नई पीढ़ी को प्रशिक्षित कर रहा है।
दीक्षांत समारोह में उपाधि व पदक प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं विशेष रूप से बधाई देते हुए कहा कि आज का दिन छात्र-छात्राओं के माता-पिता और गुरुजनों के लिए भी विशेष अवसर है, जिनके त्याग, संकल्प और समर्पण ने विद्यार्थियों की सफलता का मार्ग प्रशस्त किया है। उन्होंने छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि वेद और पुराण का अध्ययन किस प्रकार समाज के लिए अधिक से अधिक उपयोगी हो सकता है, इसका मनन करें।
उन्होंने कहा कि मुझे यह देखकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि आज यहाँ उपाधि प्राप्त करने वालों में छात्राओं की बड़ी संख्या है जो कि सरकार की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के संकल्प की सिद्धि के रूप में परिलक्षित हो रही है तथा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में औरों के लिए प्रेरणादायक है। राज्यपाल ने कहा कि हमारे वेदों में सभी प्रकार के धन में विद्या रूपी धन को सर्वश्रेष्ठ धन माना गया है, जो बांटने से बढ़ता है, तथा जिसे कोई चुरा नहीं सकता। विद्या से विहीन मनुष्य इस पृथ्वी पर पशु के समान होता है। शिक्षा एक सशक्त साधन है जिसके द्वारा विश्व में अनुकूल व सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है। शिक्षा, समाज की बुराइयों को दूर कर नयी दिशा देने का कार्य करती है। शिक्षा कभी पूर्ण नहीं होती, बल्कि यह सीखने की निरन्तर प्रक्रिया है जो जीवन भर चलती रहती है।
उन्होंने कहा कि संस्कृत उत्तराखण्ड की द्वितीय राजभाषा है, जिस पर हम सबको गर्व होना चाहिए कि। संस्कृत विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है, जिसमें सारे वेद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों की रचना की गयी। वाल्मीकि रामायण की गणना विश्व के महानतम काव्यों में की जाती है। संस्कृत हमारी संस्कृति का आधार भी है। संस्कृत का भौगोलिक विस्तार हमारे देश को एक सूत्र में बांधता है। संस्कृत केवल धार्मिक गतिविधियों और कर्मकांड की भाषा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसने ज्ञान की अनेक शाखाओं को आधार प्रदान किया है। इनमें वैदिक गणित से लेकर व्याकरण तक शामिल हैं। शून्य की खोज भारत में हुई जिस पर आधुनिक विज्ञान टिका है।
संस्कृत में निहित ज्ञान-विज्ञान से दुनिया को परिचित कराने के लिए संस्कृत ग्रन्थों का देश, विदेश की अनेक भाषाओं में अनुवाद को राज्यपाल ने जरूरी बताया। संस्कृत को आमजन की भाषा बनाने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ना चाहिये। सोशल मीडिया संस्कृत के प्रचार-प्रसार में उपयोगी हो सकता है।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों को रोजगार उन्मुख बनाना अत्यंत आवश्यक है। संस्कृत से जुड़े क्षेत्रों में रोजगार की अपार सम्भावनायें हैं। योग, आयुर्वेद, ज्योतिष, खगोल विज्ञान जैसे ज्ञान मूल रूप से संस्कृत में ही उपलब्ध हैं। इनका अध्ययन करने के लिये संस्कृत शिक्षा को सशक्त होना होगा। संस्कृत भाषा से रोजगार और आर्थिक समृद्धि को जोड़कर ही इस भाषा और इसके स्नातकों का समग्र कल्याण संभव है।
विद्याअर्जन का मूल उद्देश्य धनार्जन नहीं, बल्कि धर्म है। अपने धर्म या कत्र्तव्य का पालन करके ही सुख का अनुभव किया जा सकता है। अपने ज्ञान, संस्कार, सेवाभाव और अनुशासन जैसे गुणों को अपनाकर समाज एवं राष्ट्र के समक्ष एक नया आदर्श स्थापित किया जा सकता है।
इस अवसर पर कुलपति उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय प्रो0 देवी प्रसाद त्रिपाठी, पूर्व मुख्य सचिव इन्दुकुमार पाण्डे, सचिव संस्कृत शिक्षा उत्तराखण्ड विनोद कुमार रतूड़ी, सचिव राज्यपाल उत्तराखण्ड आर0के0 सुधांशू आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम में मंच संचालन शैलेष तिवारी द्वारा किया गया।
इसके उपरांत राज्यपाल बेबी रानी मौर्या ने स्वामी कैलाशानंद ब्रह्चारी से उनके कनखल स्थित आश्रम में भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त किया तदुपरांत चण्डीघाट स्थित दक्षिण काली मंदिर के दर्शन किये।